About Us

||श्री गणेशाय नमः|| ||श्री गौरिपुत्राये नमः|| ||श्री लम्बोदाराये नमः||­­­­­­

भ्रात्रिजन

क्या परिस्थिति,व्यवस्था,रोग और महामारी जनित उपद्रव आदि हमें अपने चंगुल में बांधे रहेंगे? क्या हमारी कोई नहीं सुननेवाला? क्या हमारा भाग्य, स्वप्न, आकांक्षा, कर्म सब कुछ परिस्थिति जनित दबाव के निचे ही रहेगी?

इन सारे प्रश्नों के उत्तर ढूंढते हुए, जब अपने अतुल्य आध्यत्मिक सम्पदाओं की छानबिन करते है, तो पता चलता है की, इन बाधाओ को पार कर सकते हैं, और कामना की पूर्ति कर सकते हैं| हां, ऐसा संभव है| हमारे वैदिक विधि विधान हो, या फिर तंत्र मंत्र, या फिर नुस्खे, कुछ भी हो, पर ऐसा जरूर हो जो कामना की पूर्ति का मार्ग प्रशस्त करे|

ऐसा कई ग्रंथो में विदित है की, आत्मा परमात्मा का स्वरुप है| अगर ऐसा है तो, फिर हम भी समर्थ हैं, उस सकती को चलाने में, आज हम जिसके वश में अपने को पा रहे हैं| इस सम्बन्ध में शिव ताण्डव स्तोत्र का ये स्लोक संख्या ७ उपयुक्त है |

इस स्लोक में रूद्र को “प्रकल्प्नैक शिल्पिनी” से संबोधित किया गया है| इसका शाब्दिक अर्थ ये है की, शिव अपनी कल्पना शक्ति से चीजों का सृजन और ढालने में समर्थ हैं| तो क्या हममें वो शक्ति सिंचित हो सकती है, जो परिस्थितियों को हमारे अनुरूप बनाये|

अगर ऐसा नहीं लगता है, तो मुनि भागीरथ को याद करें| जिन्होंने गंगा जैसी देवलोक की नदी को धरती पे उतारा| रूद्र ने भी उनके मनोकामना सिद्धि में उनका सहयोग किया| हम मानव हैं, उस परम शक्ति की सबसे अच्छी रचना| अगर भाग्य है, तो कर्म भी है| रावण का चित्रण करते में रामानंद सागर के रामायण में ७४वें भाग में इसे प्रस्तुत किया गया है| जहाँ रावण कहता है की मेरी कठोर तपस्या से कर्म के विधान के अनुसार मुझे शक्तिया मिली हैं|

ऐसा बिलकुल भी ना समझे कि ये भगवान की बातें परलोक के लिए हैं| ये इह लोक के लिए भी हैं| परलोक की बाद में देखेंगे, पहले ईहलोक सुधार लेते हैं|

एक बार उस रुद्रावतार पवनसुत हनुमान जी का स्मरण करे, जिनको पता है की सिंधु पार सीता जी हैं, लेकिन अपनी शक्तियो का भान नहीं है| पता नहीं समुंद्र पार कैसे जाएँगे? पीछे जा नहीं सकते, उस से अच्छा मरण , आगे जलनिधि| जब वो उस दिन हिम्मत नहीं हारे, तो क्या आज हम हार के बैठ जाये? किसी की भी जीवनी पढ़ ले, और खुद निर्धारित कर ले| लंका विध्वंश उन्होंने ही किया, जिन्होंने हिम्मत नहीं हारा|

हम मानव है, उस परम शक्ति की सबसे अच्छी रचना| अगर भाग्य है, तो कर्म भी है, विधान भी है|

अगर हम सोचतें हैं की हम उस पद, सम्मान, ऐश्वर्य के लायक हैं, तो फिर हिम्मत क्यु हारना| आइये परिस्थितियों को हराए| अपनी विजय गाथा लिखे| आज से ही इस समुंद्र को वायु वेग से चीरना चालु करें| प्रबुद्धो, पुरुषार्थ का संकल्प लें और बढ़ चलें|

बाधा तो उस रघुपति श्री रामदूत हनुमान जी को भी आई थी| लेकिन कपिशिरोमणि वज्रअंगी हनुमान जी ने समय की धारा पे वो लिख दिया, जिसका आज भी गुणगान करते हैं|

अँधेरे का साम्राज्य बहुत बरा हो सकता है| लेकिन ये समझ कर की, मैं दीपक हूँ, मेरी पूंजी जल कर ऊष्मा और प्रकाश फ़ैलाने की है| मैं उन्ही कर्मफलो से इस जंजाल का दमन करूँगा और अपनी कीर्ति चहुदिशाओं में फैलाऊंगा |

अगर मानव परमात्मा का स्वरुप है, फिर असीम शक्तियो का नहीं तो, कम से कम इन परिस्थितियों को पलट देने का सामर्थ्य तो होना ही चाहिए| कदाचित हमें उस सत्ता से जुड़ने की जरूरत है| आईये विश्वास और दृढ संकल्प के साथ उस दिशा में बढे, जहाँ हम निरीह ना हों| आईये हम उस दिशा में चलें, और वो कीर्ति रच दे, जो आनेवाले पीढियों की हिम्मत को सिंचित करें| इस समय की धारा में ऐसा स्वरुप गढ़ दे, जो जन्मो तक कीर्ति का शक्ति पुंज रहे |

मैं संघर्ष करूँगा, विजयी होने तक |

आगे अर्जी हमारी, मर्जी तुम्हारी (उस परम सत्ता की)

आपके विजय मार्ग को आसान और बलवती करने के लिए, मेरा प्रयास उन गुढ़ विद्या, या साजो सामान, या विधियो की खोज करना है, जो आपकी सहायक हों| आपके हिम्मत, उर्जा और ज्ञान को बढ़ाना है, जो आपको लक्ष्य के समीप ले जाए |



 

X