शनिदेव के 5 मंत्र

वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:।।

भावार्थ:-जब शनि ग्रह वैदुर्यरत्न या बनफूल या अलसी के फूल जैसे शुद्ध रंग से प्रकाशित होता है, तो यह विषयों के लिए शुभ फल देता है, यह अन्य पात्रों को प्रकाश देता है, फिर उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऋषि महात्मा कहते हैं।

श्री नीलान्जन समाभासं, रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम।।

भावार्थ: शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं। शनि देव को नौ ग्रहों का राजा कहा जाता है। शनि देव ही व्यक्ति को अपने कर्मों का फल देते हैं। शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना बहुत शुभ होता है।

ॐ शं शनैश्चरायै नम: ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
भावार्थ: शनिवार का दिन शनिदेव का होता है और इस दिन स्नान करके काले वस्त्र धारण करें। शनिदेव की मूर्ति के पास जाकर इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप घर या मंदिर में कहीं भी किया जा सकता है।

ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया। कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा।। शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्। दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम।।
भावार्थ: ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते हैं।

ऊं कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात।
भावार्थ: हर शनिवार शाम को पीपल के पेड़ पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यही काम शमी के पेड़ के नीचे भी करें। इससे शनि दशा का प्रभाव कम होता है।

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