मां विन्ध्यवासिनी मंदिर विंध्याचल धाम

जैसा कि नाम से प्रतीत होता है देवी विन्ध्यवासिनी उत्तरप्रदेश के मीरजापुर जिले के विन्ध्याचल स्थान की संरक्षक मानी जाती हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार वे देवी दुर्गा की अवतार हैं। उनके आसान को हिन्दू भक्तों द्वारा सबसे पवित्र शक्तिपीठ माना जाता है। विन्ध्यवासिनी देवी को स्थानीय लोगों द्वारा लोकप्रिय रूप से कजाला देवी के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें प्रेम और करूणा का प्रतीक माना जाता है। विन्ध्याचल देवी मन्दिर एक विशाल संरचना है जो विन्ध्याचल शहर के व्यस्त बाजार के बीचो-बीच स्थित है। इस तीर्थस्थल में देवी की प्रतिमा एक शेर पर स्थित है। मर्ति को काले पत्थर से तराशा गया है। मन्दिर परिसर में कई शिव लिंगों के अलावा धामध्वजा देवी, बारह भुजा देवी और महाकाली के भी मन्दिर स्थित हैं। एक छत्र जिस सप्तशती मण्डप कहते हैं उसपर देवी दुर्गा की प्रार्थना वाली पवित्र पुस्तक दुर्गा शप्तशती से श्लोक लिखे हैं। अप्रैल या चैत्र और आश्विन या अक्तूबर के महीनों में पड़ने वाले नवरात्रों में इस मन्दिर में श्रृद्धालु बड़ी भारी संक्या में आते हैं।

विंध्याचल मंदिर के दर्शन का समय

विंध्याचल मंदिर में दर्शन करने का समय

  • सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
  • दोपहर 1:30 से 7:15 बजे
  • शाम के 8:15 बजे से 10:30 बजे तक हैं।

मां विन्ध्यवासिनी मंदिर विंध्याचल धाम का इतिहास

विंध्याचल और देवी विंध्यवासिनी की उदारता का उल्लेख भारत वर्ष के कई प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथो में किया गया है। इनमे से कुछ विशेष ग्रन्थ जैसे मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत, वामन पुराण, देवी भागवत, राजा तरंगिनी, बृहत् कथा, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण, कदंब्री और कई तंत्र शास्त्र में मिल जाता हैं। खास तौर पर मार्कंडेय पुराण में देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन देखने को मिलता हैं। विंध्याचल मंदिर के इतिहास पर नजर डालने पर हमें कई प्राचीन कथाओं का वर्णन देखने को मिलता हैं।

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