उत्तरप्रदेश में गंगा के किनारे बसे शहर काशी (वाराणसी ) में विश्वनाथ जी का मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। काशी विश्वनाथ जी का यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
इस मंदिर की स्थापना कई साल पहले की गई थी। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव निवास करते हैं, उनकी त्रिशूल की नोंक पर ही धार्मिक नगरी काशी बसी हुई है। भगवान शिव यहां आने वाली किसी भी तरह की आपदा एवं संकट से यहां के लोगों की संरक्षक की तरह रक्षा करते हैं।
इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि, भगवान शिव की इस आलौकिक मंदिर के दर्शन मात्र से ही यहां आने वाले भक्तों के सभी तरह के कष्टों का निवारण होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु कभी खाली हाथ वापस नहीं लौटते हैं।
आइए जानते हैं विश्व प्रसिद्ध इस अनूठे काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण, इतिहास और इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में
काशी विश्वनाथ जी मंदिर का इतिहास
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर सदियों पुराना है, जिसका 11 वीं सदी में राजा हरिशचन्द्र और सम्राट विक्रमादित्य द्धारा जीर्णोद्धारा करवाया गया था। इसके बाद 1194 ईसवी में मोहम्मद गौरी ने इस मंदिर पर आक्रमण कर इसे लूटने के बाद इसे तोड़ दिया था।
इसके बाद इस मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार किया गया था। लेकिन 1447 ईसवी में काशी विश्वनाथ मंदिर को जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्धारा फिर से तोड़ दिया गया था। इसके बाद 1585 ईसवी में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्धारा इस जगह पर फिर से एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
फिर 1632 ईसवी में मुगल शासक शाहजहां ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी विशाल सेना भेजी थी, इस दौरान मुगल सेना इस मंदिर का तो बाल भी बांका नहीं कर सकी, लेकिन काशी के अन्य 63 मंदिरों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था।
इसके बाद मुगल सम्राट शाहजहां के पुत्र औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में इस विशाल एवं समृद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। जिसके बाद इस मंदिर को तोड़कर यहां एक ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था।
इसके बाद 1752 से 1780 के बीच मल्हारराव होलकर एवं मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया ने काशी विश्वनाथ मंदिर को फिर से बनवाने के लिए कई प्रयास किए थे।
इसके चलते अगस्त, 1770 में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के शासक शाह आलम से काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने की भरपाई करने का भी आदेश जारी कर लिया था, लेकिन उस समय तक काशी पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना प्रभुत्व जमा लिया था, जिसके चलते उस समय काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार करने का काम रुक गया था।
सके बाद मालवा प्रांत की महरानी अहिल्याबाई होलकर ने 1777 से 1780 के बीच दुनिया भर में मशहूर इस काशी विश्वनाथ मंदिर का फिर से निर्माण काम करवाया था।
फिर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने आदिलिंग के रुप में मौजूद भगवान शिव के अविमुक्तेश्वर रुप को सोने का छत्र चढ़ाया था, जबकि ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानावापी का मंडप का निर्माण करवाया एवं नेपाल के महाराजा ने यहां भव्य नंदी जी की प्रतिमा की स्थापना करवाई थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं
भोले शंकर को समर्पित काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी प्रचलित यह कथा है कि यहां भगवान शिव ने अपने एक अनन्य भक्त को सपने में दर्शन देकर यह कहा था कि पवित्र मन से गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की यहां स्थापना होगी। जिसके बाद से यहां भगवान शंकर अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती के साथ विराजित हैं।
इतिहास में विनाश और निर्माण का प्रतीक रहा काशी के इस प्राचीन विश्वनाथ जी के मंदिर से जुड़ी एक अन्यता पौराणिक कथा के मुताबिक मां भगवती ने यहां स्वयं भगवान शंकर को स्थापित किया था।
इसके अलावा नवीनतम काशी विश्वनाथ मंदिर से एक जुड़ी कहानी के मुताबिक, एक बार जब पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने सच्चे मन से पूरी श्रद्दा के साथ भगवान शिव के विश्वनाथ रुप की आराधना की थी, उस दौरान उन्हें एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन हुए थे, जिसने उन्हें बाबा विश्वनाथ जी की स्थापना के लिए कहा था।
इसके बाद मदन मोहन मालवीय जी ने इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण काम पूरा करवाया. लेकिन गहरी बीमारी के चलते वे इस मंदिर के निर्माण को पूरा नहीं करवा सके, और फिर उद्योगपति युगल किशोर बिरला जी ने इस मंदिर का निर्माण काम को पूरा करवाया था। काशी विश्वनाथ जी का मंदिर से कई अन्य मान्यताएं एवं चमत्कारिक रहस्य जुड़े हुए हैं।
दो हिस्सों में स्थित हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग
दुनिया भर में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्योर्तिलिंग दो हिस्सों में स्थित है। इसके दाएं तरफ शक्ति के रुप में मां भगवती विराजमान है, जबकि दूसरी तरफ भगवान शिव अपने वाम रुप में विराजित हैं अर्थात यहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान है।
इसलिए प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में काशी को मोक्षनगरी भी कहा जाता है, जहां सदियों से ही शिव भक्त यहां मोक्ष प्राप्त करने के लिए आते रहे हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े रोचक एवं महत्वपूर्ण तथ्य
- उत्तरप्रदेश के वाराणसी में स्थित यह विश्वप्रसिद्ध विश्वनाथ जी का मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक है। वहीं भगवान शिव की नगरी काशी को मोक्ष नगरी के रुप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि काशी नगरी में देह त्यागने से मनुष्य को मोक्ष मिलता है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता भी है कि गंगा के किनारे बसी काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोंक पर काशी बसी है। और भगवान शिव यहां के लोगों की आपदाओं से रक्षा करते हैं।
- भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी के बारे में यह भी कहा जाता है कि, जब इस धरती की उत्पत्ति हुई थी, तब सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी।
- विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ जी के मंदिर के ऊपर बने सोने के छत्र से जुड़ी यह मान्यता है कि इस छत्र के दर्शन मात्र से ही लोगों की सभी मुरादें पूरी होती हैं।
- भगवान शंकर को समर्पित इस मंदिर में बाबा विश्वनाथ वाम रुप में शक्ति की देवी मां भगवती के साथ प्रतिष्ठित हैं, जो कि अपने आप में अद्भुत है, यही वजह है कि इस मंदिर की दुनिया में एक अलग पहचान है। ऐसा दुनिया के किसी अन्य मंदिर में देखने को नहीं मिलता है।
- बाबा विश्वनाथ जी का मंदिर कोई वास्तविक मंदिर नहीं है। काशी के प्राचीन मंदिर पर कई बार हमले किए गए। वहीं मुगल शासक औरंगेजब ने इस मंदिर को नष्ट कर इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। इसके बाद महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस मंदिर का फिर से निर्माण करवाया था।
- इस मंदिर को भले ही आक्रमणकारियों ने कई बार नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि जब क्रूर मुगल शासक औरंगजेब द्धारा इस मंदिर की तोड़ने भनक लोगों को लगी थी,तो उन्होंने भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को एक कुंए में छिपा दिया था। यह कुंआ आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच में स्थित है।
- 18वीं सदी के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। वे भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। इस मंदिर के निर्माण को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि 18वीं सदीं के दौरान खुद भगवान शिव ने रानी अहिल्याबाई के सपने में आकर इस जगह उनका मंदिर बनवाने के लिए कहा था।
- दुनिया भर में मशहूर बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर में चार तंत्र द्दार बने हुए हैं, जिनमें शांति द्धार, कला द्धार, प्रतिष्ठा द्धार और निवृत्ति द्धार शामिल हैं। दुनिया में यह अपने आप में इकलौता ऐसा मंदिर है जहां शिवशक्ति एक साथ और तंत्र द्धार भी बने हुए हैं।
- काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का छत्र सोने का है, हालांकि मंदिर पर पहले नीचे तक सोना लगा था, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने इस मंदिर को लूटने के दौरान सोना निकाल लिया था, इसलिए अब सिर्फ छत्र पर ही सोना रह गया है। ऐसा मान्यता है कि सोने के छत्र के दर्शन करने मात्र से ही लोगों की मान्यताएं पूर्ण हो जाती हैं।
- बाबा विश्वनाथ जी के इस अनूठे मंदिर के शीर्ष पर एक सुनहरा छत्ता भी लगा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि, इस सुनहरे छत्ता के दर्शन करने के बाद मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
- काशी विश्वनाथ जी के मंदिर में वैसे तो पूरे साल भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन सावन के महीने में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। वहीं आम दिनों में यहां सोमवार के दिन काफी भीड़ रहती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का समय
श्री काशी विश्वनाथ की पाँच आरतियाँ होती है:
1. मंगला आरती : 3.00 – 4.00 (सुबह)
2. भोग आरती : 11.15 से 12.20 (दिन)
3. संध्या आरती : 7.00 से 8.15 (शाम में)
4. श्रृंगार आरती : 9.00 से 10.15 (रात्रि)
5. शयन आरती : 10.30 से 11.00 (रात्रि)
सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए मंदिर में मोबाइल फ़ोन, कैमरा, बेल्ट और किसी भी इलेक्ट्रोनिक उपकरण या धातु की सामग्री के साथ प्रवेश करना मना है।
ऐसे पहुंचे काशी विश्वनाथ मंदिर
उत्तरप्रदेश का वारणासी राज्य सड़क, रेल मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों एवं महानगरों से अच्छी ट्रेन व बस सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा यहां फ्लाइट के द्धारा भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
बाबतपुर विमानक्षेत्र, केन्द्र से करीब यह 24 किमी की दूरी पर स्थित है। इस एयरपोर्ट से बैंगलोर, काठमांडू, कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत देश के लगभग सभी प्रमुख शहर में अंतराष्ट्रीय शहरों की भी अच्छी एयर कनेक्टिविटी है।